Tuesday, November 30, 2010

भारत में वैकल्पिक पत्रकारिता का आगाज़

यह सही है कि वैकल्पिक पत्रकारिता अथवा अल्टरनेटिव जर्नलिज्म को लेकर काफी संशय का माहौल है। स्थापित मीडियाकर्मी इसे छिछोरापन मानते हैं और कतिपय तिरस्कार की दृष्टि से देखते हैं। यही नहीं, वे यह भी मानते हैं कि इसमें अनुशासन और पेशेवर दृष्टिकोण का अभाव है अत: वैकल्पिक पत्रकारिता को तथ्यात्मक पत्रकारिता मानना भूल है।
हमें समझना होगा कि वैकल्पिक पत्रकारिता का जन्म कैसे हुआ। इंटरनेट और ब्लॉग के प्रादुर्भाव ने पत्रकारिता में बड़े परिवर्तन का द्वार खोला है। अभी कुछ वर्ष पूर्व तक खबरवह होती थी जो अखबार में छप जाए या रेडियो-टीवी पर प्रसारित हो जाए। पहले इंटरनेट न्यूज़ वेबसाइट्स और अब ब्लॉग की सुविधा के बाद तो एक क्रांति ही आ गई है। न्यूज़ वेबसाइट्स ने छपाई, ढुलाई और कागज का खर्च बचाया तो ब्लॉग ने शेष खर्च भी समाप्त कर दिये। ब्लॉग पर तो समाचारों का प्रकाशन लगभग मुफ्त में संभव है।
ब्लॉग की क्रांति से एक और बड़ा बदलाव आया है। इंटरनेट के प्रादुर्भाव से पूर्व पत्रकारवही था जो किसी अखबार, टीवी समाचार चैनल अथवा आकाशवाणी (रेडियो) से जुड़ा हुआ था। किसी अखबार, रेडियो या टीवी न्यूज़ चैनल से जुड़े बिना कोई व्यक्ति पत्रकारनहीं कहला सकता था। न्यूज़ मीडिया केवल आकाशवाणी, टीवी और समाचारपत्र, इन तीन माध्यमों तक ही सीमित था, क्योंकि आपके पास समाचार हो, तो भी यदि वह प्रकाशित अथवा प्रसारित न हो पाये तो आप पत्रकार नहीं कहला सकते थे। परंतु ब्लॉग ने सभी अड़चनें समाप्त कर दी हैं। अब कोई भी व्यक्ति लगभग मुफ्त में अपना ब्लॉग बना सकता है, ब्लॉग में मनचाही सामग्री प्रकाशित कर सकता है और लोगों को ब्लॉग की जानकारी दे सकता है, अथवा सर्च इंजनों के माध्यम से लोग उस ब्लॉग की जानकारी पा सकते हैं। स्थिति यह है कि ब्लॉग यदि लोकप्रिय हो जाए तो पारंपरिक मीडिया के लोग ब्लॉग में दी गई सूचना को प्रकाशित-प्रसारित करते हैं। अब पारंपरिक मीडिया इंटरनेट के पीछे चलता है।
अमरीका के लगभग हर पत्रकार का अपना ब्लॉग है। भारतवर्ष में भी अब प्रतिष्ठित अखबारों से जुड़े होने के बावजूद बहुत से पत्रकारों ने ब्लॉग को अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है। यही नहीं, कई समाचारपत्रों ने भी अपने पत्रकारों के लिए ब्लॉग की व्यवस्था आरंभ की है जहां समाचारपत्र में छपी खबरों के अलावा भी आपको बहुत कुछ और जानने को मिलता है। इंटरनेट पर अंग्रेज़ी ही नहीं, हिंदी में भी हर तरह की उपयोगी और जानकारीपूर्ण सामग्री प्रचुरता से उपलब्ध है। पत्रकारिता से जुड़े पुराने लोग जो इंटरनेट की महत्ता से वाकिफ नहीं हैं, अथवा कुछ ऐसे मीडिया घराने जो अभी ब्लॉग के बारे में नहीं जानते, आने वाले कुछ ही सालों में, इंटरनेट और ब्लॉग की ताकत के आगे नतमस्तक होने को विवश होंगे। मैं मानता हूं कि अगले पांच सालों में, या शायद उससे भी पहले, ऐसा हो जाएगा।
पत्रकारिता के अपने नियम हैं, अपनी सीमाएं हैं। आदमी कुत्ते को काट ले तो खबर बन जाती है, कोई दुर्घटना, कोई घोटाला, चोरी-डकैती-लूटपाट खबर है, महामारी खबर है, नेताजी का बयान खबर है, राखी सावंत खबर है, बिग बॉस खबर है, और भी बहुत कुछ खबर की सीमा में आता है। कोई किसी के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करवा दे, तो वह खबर है, चाहे अभी जांच शुरू भी न हुई हो, चाहे आरोपी ने कुछ भी गलत न किया हो, तो भी सिर्फ एफआईआर दर्ज हो जाना ही खबर है। ये पत्रकारिता की खूबियां हैं, ये पत्रकारिता की सीमाएं हैं।
अभी तक वैकल्पिक पत्रकारिता को सिटिजन जर्नलिज्म से ही जोडक़र देखा जाता रहा है, जबकि वस्तुस्थिति इसके विपरीत है। बहुत से अनुभवी पत्रकारों के अपने ब्लॉग हैं जहां ऐसी खबरें और विश्लेषण उपलब्ध हैं जो अन्यत्र कहीं प्रकाशित नहीं हो पाते। सच तो यह है कि वैकल्पिक पत्रकारिता ऐसे अनुभवी लोगों की पत्रकारिता है जो पत्रकारिता के बारे में गहराई से जानते हैं लेकिन पत्रकारिता की मानक सीमाओं से आगे देखने की काबलियत और ज़ुर्रत रखते हैं। वैकल्पिक पत्रकारिता देश और समाज के विकास की पत्रकारिता है, स्वास्थ्य, समृद्धि और खुशहाली की पत्रकारिता है। वैकल्पिक पत्रकारिता, स्थापित पत्रकारिता की विरोधी नहीं है, यह उसके महत्व को कम करके आंकने का प्रयास भी नहीं है। वैकल्पिक पत्रकारिता, परंपरागत पत्रकारिता को सप्लीमेंट करती है, उसमें कुछ नया जोड़ती है, जो उसमें नहीं था, या कम था, और जिसकी समाज को आवश्यकता थी, वैसे ही जैसे आप भोजन के साथ-साथ न्यूट्रिएंट सप्लीमेंट्स लेते हैं ताकि आपके शरीर में पोषक तत्वों का सही संतुलन बना रहे और आप पूर्णत: स्वस्थ रहें। वैकल्पिक पत्रकारिता, परंपरागत पत्रकारिता के अभावों की पूर्ति करते हुए उसे और समृद्ध, और स्वस्थ तथा और भी सुरुचिपूर्ण बना सकती है।
पारंपरिक पत्रकारिता का एक बड़ा वर्ग नेगेटिव पत्रकारिता को पत्रकारिता मानता है जो सिर्फ खामियां ढूंढऩे में विश्वास रखती है, जो मीडिया घरानों के अलावा बाकी सारी दुनिया को अपराधी, या फिर टैक्स चोर अथवा मुनाफाखोर मानकर चलती है या फिर पेज-3 पत्रकारिता हो गई है जो मनभावन फीचर छापकर पाठकों को असली मुद्दों से दूर ले जाती है। वैकल्पिक पत्रकारिता इससे अलग हटकर देश की असल समस्याओं पर गंभीर चर्चा के अलावा विकास और समृद्धि की पत्रकारिता पर भी ज़ोर देगी।
कुछ वर्ष पूर्व तक अखबारों में खबर का मतलब राजनीति की खबर हुआ करता था। प्रधानमंत्री ने क्या कहा, संसद में क्या हुआ, कौन सा कानून बना, आदि ही समाचारों के विषय थे। उसके अलावा कुछ सामाजिक सरोकार की खबरें होती थीं। समय बदला और अखबारों ने खेल को ज्यादा महत्व देना शुरू किया। आज क्रिकेट के सीज़न में अखबारों के पेज के पेज क्रिकेट का जश्न मनाते हैं। इसी तरह से बहुत से अखबारों ने अब बिजनेस और कार्पोरेट खबरों को प्रमुखता से छापना आरंभ कर दिया है। फिर भी देखा गया है कि जो पत्रकार बिजनेस बीट पर नहीं हैं, वे इन खबरों का महत्व बहुत कम करके आंकते हैं। वे भूल जाते हैं कि शेयर मार्केट अब विश्व में तेज़ी और मंदी ला सकती है, वे भूल जाते हैं कि आर्थिक गतिविधियां हमारे जीवन का स्तर ऊंचा उठा सकती हैं। इससे भी बढक़र वे यह भी भूल जाते हैं कि पंूजी के अभाव में खुद उनके समाचारपत्र बंद हो सकते हैं। कुछ मीडिया घराने जहां बिजनेस बीट की खबरों से पैसा कमाने की फिराक में हैं, वहीं ज्य़ादातर पत्रकार बिजनेस बीट की खबरों को महत्वहीन मानते हैं। यह गरीबी नहीं, गरीबी की मानसिकता है।यदि हम भारतवर्ष को एक विकसित देश के रूप में देखना चाहते हैं तो हमें समझना होगा कि पत्रकारों को गरीबी से ही नहीं, गरीबी की मानसिकता से भी लडऩा होगा।
उदारवाद के दौर की शुरुआत के साथ ही भारत में रोजगार और समृद्धि की नई संभावनाओं का आगाज़ हुआ, लेकिन ग्रामीण इलाकों में सूचना की कमी, निहित स्वार्थों के षडयंत्रों के माध्यम से फैलाए गए भ्रमों के चलते,  आम जनता और यहां तक कि बहुत से मीडियाकर्मी भी मिस-इन्फर्मेशन के शिकार हुए और विकास का लाभ आम जनता तक उतना नहीं पहुंचा, जितना कि संभव था। ऐसे में सूचनाओं को समग्रता में देखने तथा इन सूचनाओं पर कुछ और बहस की आवश्यकता है। वैकल्पिक पत्रकारिता का सिर्फ यही उद्देश्य है। व्यावहारिक पत्रकारिता के सह-लेखक तथा भारतीय मीडिया की सर्वाधिक प्रतिष्ठित हिंदी वेबसाइट, समाचार4मीडिया के संस्थापक-संपादक पीके खुराना ने अब बुलंदीऑनलाइन.कॉम के नाम से हिंदी की एक नई वेबसाइट शुरू की है। बुलंदीऑनलाइन.कॉम पत्रकारिता की इस स्थापित धारा से अलग चलकर वैकल्पिक पत्रकारिता का बढ़िया उदाहरण है।

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