Wednesday, November 24, 2010

जीने का हुनर

जिंदगी दी है तो जीने का हुनर भी देना
पांव बख्शे हैं तो तौफीक-ए-सफ़र भी देना
बोलना तूने सिखाया है कि मैं तो गूंगा था
अब जो बोलूँगा तो बातो मैं असर भी देना
मेरे अंधे खवाबों को उसूलों का तराजू दे दे
मेरे मालिक मुझे ज़ज्बात पे काबू दे दे
मैं समंदर भी किसी गैर के हाथों से न लूं
और एक कतरा भी समंदर है, अगर तू दे दे

1 comment:

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